विशाखदत्त/vishakhdatt :परिचय और कृतित्व
विशाखदत्त /vishakhdatt
परिचय और कृतित्व
चाणक्य उक्ति (मुद्राराक्षस –1/26)
एका केवमर्थसाधनविधौ सेनाशतेभ्योअधिका ।
नन्दोन्मूलनदृष्टवीर्यमहिमा बुद्धिस्तु मा गान्मम। ।
समय – 400 ईसवी के लगभग
- विशाखदत्त चन्द्रगुप्त द्वितीय के समकालीन थे ।
पिता – महाराज पृथु
पितामह – सामंत बटेश्वरदत्त
कृतित्व
रचना – मुद्राराक्षस
रुपक भेद – नाटक
अंक –7 अंक
नायक – चाणक्य
प्रतिनायक – राक्षस
राक्षस मित्र – चंदनदास
अन्य पात्र – चन्द्रगुप्त ,शकठदास ,मलयकेतु
- इस नाटक की सबसे प्रमुख विशेषता यह है कि यह नाटक नायिकाविहीन नाटक है ।
- विदूषक का भी इसमें बहिष्कार किया गया ।
नाटक की संक्षिप्त कथावस्तु
- यह सात अंकों का राजनीति विषयक नाटक है ।
अंगी रस – वीर रस
शैली – ओज गुणों से युक्त गौड़ी रीति
- प्रसाद और माधुर्य गुणों की प्रचुरता
मुद्राराक्षस में प्रयुक्त प्रमुख छन्द
1. शार्दूलविक्रीडित
2.स्रग्धरा
3.वसन्ततिलका
4.शिखरिणी
5.आर्या
6.उपजाति आदि
उपजीव्य ग्रन्थ – इतिहास प्रसिद्ध ,विष्णु पुराण
सातों अंकों के नाम
1.मुद्राप्राप्ति
2.भूषणविक्रय
3.कृतकलह
4.प्रलोभन
5.कूटलेख
6.कपटपाश
7.संग्रहण
अंकों का स्मरण करने के लिए श्लोक
मुद्राप्राप्तिर्विक्रयश्च कलहोअथ प्रलोभनम् ।
कूटलेखश्च पाशः संग्रहणं राक्षसे क्रमात् ।।
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